आओं हम वृक्ष लगाये, धरती का श्रृगांर करायें।

 आओं हम वृक्ष लगाये, धरती का श्रृगांर करायें।


आओं हम वृक्ष लगाये, धरती का श्रृगांर करायें।

हरा भरा कर धरती का हम रूप रंग सजायें।।

बचे न नंगी धरती मृदा का स्वरूप निखारे।

वृक्षारोपण कर दुनियां को समृद्ध बनायें।।

आज सुधारे अपना तो कल भी बेहतर होगा।

वृक्षों की हरितिमा ही धन-दौलत का माध्यम होगा।।

चांह नही है दुनियां को, तो फिर पछताना होगा।

ले संकल्प हमको वृक्षों का संरक्षण करना होगा।।

शुद्ध प्राणवायु की खातिर जीवजन्तुओं को बचाना होगा।

तभी मिलेगी गहरी शान्ती पर्यावरण सन्तुलित रखना होगा।।

गर न चेते अभी फिर आक्सीजन लेकर चलना होगा।

ओजोन परत है ढ़ीली, बेमौसम से छुटकारा पाना होगा।।

अभी सुधर जाओं मित्रों वरना अफसाना ही होगा।

करे प्रतिज्ञा सच्चे मन से रोपण हमें करना होगा।।

आओं हम वृक्ष लगायें, धरती का श्रृगांर करायें।


कवि

जगत बाबू सक्सेना

सह सम्पादक

प्रज्ञा कुंभ



उक्त काव्य को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें 12 जून 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 


आओं हम वृक्ष लगाये, धरती का श्रृगांर करायें।


Gaurav Saxena

Author & Editor

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