गूगल महाशय का भाषायी चमत्कार

गूगल महाशय का भाषायी चमत्कार


 गूगल महाशय का भाषायी चमत्कार


मैं आज आश्चर्यचकित रह गया जब मेने अपनें एक लेख को सोशल मीडिया पर वायरल होते देखा। आश्चर्यचकित होनें के पीछे बात ही कुछ अद्भुत है जिसमें मेरे हिन्दी भाषी लेख को गूगल महाशय के द्वारा अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया गया था। अब गूगल महाशय के पास संवेदनायें और भावनायें तो होती नही अत: श्रीमान जी नें अच्छे खासे लेख का अनुवाद अपनें शब्दभण्डार के आधार पर पूर्ण करके अर्थ का अनर्थ कर दिया। पूरे लेख को गूगल महाशय नें अपना अलग ही रंग दे दिया जिसे न ही पढ़ा जाये तो अच्छा होगा।

इस कृत्य के बारे में अधिक जानकारी के उद्देश्य से मैनें अपनें नौजवान पोते से सहायता ली तो पता चला कि कृत्य को करनें वाला कोई और नही मेरे पड़ोस के ही एक बालक के बाये हाथ का खेल है। बढ़ती जिज्ञासा को शांत करनें के लिए मैं भरी दोपहर में ही अपनें पड़ोसी के यहॉ जा पहुंचा। बालक से तो मुलाकात नही हो पायी परन्तु परिवारीजनों के द्वारा पता चला कि बालक का स्कूली प्रोजेक्ट अभी हाल ही में मेरे एक समाचार पत्र में छपे लेख से मेल खा गया। और बालक की खोज मेरे ही लेख पर समाप्त हो गयी। खैर मैं अपनें घर पर वापस आ गया और अपनें सभी पाठकों से उस अर्थ के अनर्थ वाले लेख पर क्षमा मांगी तथा इस घटना के पीछे के उद्देश्य को भी संक्षेप में लिखकर पाठकों के प्रति पनपते असन्तोष को बदलनें की कोशिश की।

यह पूरी घटना मेरे जैसे हिन्दी प्रेमी लेखक के लिए एक गम्भीर विषय है। कि हमारी नयी पीढ़ी पूरी तरह से गूगल पर दिनों- दिन आश्रित होती जा रही है जिसे न तो अपनी मातृभाषा हिन्दी का ज्ञान है और न ही अंग्रेजी भाषा के शब्दों के चयन का ज्ञान। यह हिन्दी भाषा के प्रति पनपते गहरे संकट का संकेत है। कि हिन्दी भाषा कब समाज में सम्मान पा सकेगी लोग कब हिन्दी भाषा के प्रति अपनी रुचि दिखायेगे। यह प्रश्न निरन्तर गहराता जा रहा है जिसके चलते हमारी युवा पीढ़ी गूगल महाशय के शब्दभण्डार के चक्कर में पड़ कर अर्थ का अनर्थ कर बैठती है। यदि भाषाऔं पर अच्छी पकड़ होती तो गूगल के द्वारा बिगाड़े गये शब्दों को भाव के अनुरूप सही भी किया जा सकता था।

और दूसरा भी एक प्रश्न मन मस्तिष्क में अनायाश आ ही जाता है कि युवा पीढ़ी कहीं न कहीं शार्ट कट में सफलता प्राप्त करना चाहंती है, उसके सभी प्रश्नों और जिज्ञासाओं का अन्त मानों गूगल महाशय के पास ही हो। आधे- अधूरे ज्ञान से भरे गूगल के मायाजाल में फसती युवा पीढ़ी निरन्तर भाषा और समाज के बीच की खायी को बढ़ा रही है। यदि समय रहते इन तथ्यों पर ध्यान न दिया गया तो इसके दूरगामी परिणाम घातक साबित सिद्ध होगे।


लेखक
गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र देश धर्म नें दिनांक 18 जुलाई 2021 के अंक में प्रकाशित किया है।

गूगल महाशय का भाषायी चमत्कार


Gaurav Saxena

Author & Editor

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