सौभाग्य का वर देता वट वृक्ष

सौभाग्य का वर देता वट वृक्ष


सौभाग्य का वर देता वट वृक्ष

 


ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या का दिन हिन्दू सुहागिन नारियों के लिए एक अलग स्थान रखता है। इस दिन को वट सावित्री व्रत पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिन माहिलाएं अपने अखण्ड सौभाग्य के लिए वट वृक्ष अर्थात बरगत की पूजा अर्चना करती है तथा इस वृक्ष की परिक्रमा कर इसके तनें में कच्चा सूत 108 बार बांधती है। मान्यता है कि वट वृक्ष में ईश्वरीय निवास होता है, इस वृक्ष की जड़ो में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु तथा पत्तियों तथा शाखाओं में स्वयं भगवान शिव विराजमान रहते है। इसलिए केवल वट वृक्ष की पूजा से ही तीनों देवों की पूजा का फल प्राप्त होता है। वट वृक्ष अत्यन्त लाभकारी है तथा इसके कई औषधीय गुण है। यह वायु को निरन्तर शुद्ध करता रहता है तथा भरपूर ऑक्सीजन भी देता रहता है। आज के परिवेश में जहॉ आक्सीजन के लिए मानवता तड़पी है तब यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि हम वट वृक्ष का संरक्षण करे तथा अधिक से अधिक इसका पौधारोपण करें।

नि:सन्देह वृक्षो का भारतीय संस्कृति में अपना एक अलग महत्व है तथा सभी किसी न किसी रूप में पूजित है। भारतीय संस्कृति प्राचीन काल से वृक्षो के संरक्षण और संवर्धन का सन्देश इन्सान को देती रही है। आज भी भारतीय नारियों के द्वारा वट सावित्री व्रत जैसे पर्व मनानें की परम्परा का निर्वाहन फूहड़ और अश्लीलता से भरी पाश्चात्य सभ्यता के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है तथा वृक्षों के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है। भारतीय नारियों को सदैव अपनें आत्म स्वाभिमान को जीवित रखना चाहियें तथा ध्यान देना चाहियें कि वे अपनी भारतीय संस्कृति को कभी भी अन्देखा न करेँ। समाज को भी देखना होगा कि नारी सदैव पूजित रही है तथा उसकी मर्यादा को सदैव जीवित रखना चाहियें।

यह भारत की धरा धन्य है जहॉ समय- समय पर नारियों नें अपना जौहर दिखाया है तथा अपनें सौभाग्य की सदैव रक्षा की है। आध्यात्मिक महत्व को दर्शाती भारतीय नारी सावित्री की कथा तो जग जाहिर है जिसनें वट वृक्ष के नीचे ही तप किया था और अपनें अल्पायु पति सत्यवान को यमराज की कैद तक से वापस पृथ्वी पर लौटा लायी थी। जब पति की आत्मा को स्वयं यमराज यमलोक ले जाने लगे तो सावित्री यमराज के पीछे- पीछे जानें लगी, तब यमराज नें कहा कि तुम्हारा अपने पति के साथ सम्बन्ध केवल पृथ्वी लोक तक ही सीमित है परन्तु सावित्री का अगाध प्रेम और उसके हठ के आगे स्वयं यमराज को भी हार माननी पड़ी। और उन्होने सावित्री के पति को वापस जीवित कर धरती पर भेजा और सत्यवान के बूढ़े माता- पिता तक को नैत्र ज्योति प्रदान की जिससे वह सावित्री से जन्मे पुत्र को अपने नैत्रों से देख सके। इस तरह सावित्री ने यह सिद्ध कर दिया कि नारी शक्तिहीन नही है वरन कठिन से कठिन कार्य को भी अन्जाम दे सकती है। जो अपनें सौभाग्य की रक्षा के लिए यमराज तक से लड़ सकती है।

 लेखिका के विचारों को  दैनिक जागरण समाचार पत्र नें भी दिनांक 11 जून 2021 के अंक में प्रकाशित  किया है।

मानषी सक्सेना
सह लेखिका
प्रज्ञा कुंभ 

सौभाग्य का वर देता वट वृक्ष

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Gaurav Saxena

Author & Editor

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