न देर हो जाये अधिक, यह ध्यान रखने लगो जरा.......................................
धुआं बहुत बढ़ गया, अब तो घुटन होने लगी है।
जंगल निशदिन कट रहे, आबादी बढ़ने लगी है।।
जल मे रसायन घुल चुके, बोतलो में प्यास बिकने लगी।
पशु- पक्षी तक विलुप्त हो चले, अनुकूल परिवेश उनका घटने लगा।।
हरितिमा नैत्रो से औझल हो चली, ओजोन तक में छिद्र होने लगा।
विषैली गैसे का अम्बार बढ़ गया, ऑक्सीजन के लिए तरसनें लगे।।
हो चले फेफड़े धरा के खोखले, नभ तलक नीर सुखने लगा।
बेमौसम होती बरसात से, कृषक भी रूदन करने लगे।।
मनुष्यता प्रण निभा धरती सें, वृक्ष रोपित करने लगो।
वक्त रहते समझो उपयोगिता, पर्यावरण की रक्षा करने लगो।।
न देर हो जाये अधिक, यह ध्यान रखने लो जरा।
यह जीवन का अर्थ सार्थक कर, पीढ़ी संरक्षित कर लो जरा।।
लेखक
गौरव सक्सेना
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