मन के जीते जीत है, मन के हारे हार है ......................

मन के जीते जीत है, मन के हारे हार है ......................

 

 मन के जीते जीत है, मन के हारे हार है ......................

चारो तरफ चीत्कार मचा है, हाहाकार कोहराम से गलियां गूंज रही है। हर तरफ कोरोना लहर ही चल रही है। कोई छोटी भी खबर हो उसमें भी नमक मिर्च लगाकर भयावह बनाकर पेश करनें की होड़ लगी है। जहॉ तक नजर फैलाओं सिर्फ कोरोना का कोहराम ही मचा हुआ है। समझ में नही आता क्या करू, क्या न करू ?  रामलाल नें एक लम्बी सांस लेते हुयें अपनी पत्नी सुशीला से कहा। सुशीला प्रेम भाव से रामलाल के और नजदीक आकर बैठ गयी और रामलाल को समझानें लगी कि यह बीमारी तो बड़े स्तर पर फैल ही रही है लेकिन कहीं हद तक इसे डरावना और भयावह रूप भी निरन्तर दिया जा रहा है। जिसके चलते सोच- सोच कर लोगो की तबियत और अधिक बिगड़ रही है। सावधानी, स्वच्छता और मास्क के प्रयोग, दो गज की दूरी, योग, प्राणायाम और सन्तुलित खानपान से हम इस बीमारी को फैलनें से रोक सकते है।

आप मेरी मानों तो कुछ दिन के लिए कोरोना की खबरों को सुनना बन्द कर दीजियें, और सोशल मीडिया से भी दूरियां बना लो। क्योकि अब बहुत हो चुका है दिन भर आपकी टीवी कोरोना का आतंक ही दिखाती रहती है। कोई सकारात्मक समाचार दिखायी ही नही पड़ता जिससें लोगो के अन्दर से कोरोना का भय निकल सके। लोग इससे बचनें की सही रणनीति अपना सकें। झूठी और सच्ची खबरों में विभेद कर पाना अब मुश्किल होता जा रहा है।  

चलियें आराम करियें, बन्द करियें यह टीवी..... सुशीला नें रामलाल से कहा।

लेकिन सुशीला, अगर टीवी बन्द रहेगी तो देश-दुनियां की खबरे कैसे पता चलेगी,.... रामलाल नें उत्सुकतावश पूछा?

हां इसके लिए आपको समय निर्धारित करना होगा, दिनभर टीवी पर कोरोना कोहराम देखनें से बचना होगा। विश्वसनीय समाचार देखना होगा न कि भयावह और हाहाकार करते चीखते चिल्लाते समाचार।

लेकिन सुशीला कोरोना की वजह से हाहाकार तो मचा ही हुआ है। तो उसमें गलत क्या है। रामलाल नें कहा ।

माना कि देश में निरन्तर कोरोना के मरीज बढ़ रहे है और इससें मरनें वालों की संख्या भी बढ़ रही है। जिसके कारण हाहाकार मचना तो लाजिमी है लेकिन हम सब को इस संकटकाल में धैर्य से काम लेना चाहियें। सरकार के बतायें नियमों का पालन करना चाहियें, और सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक सुदृण बनानें के लिए निरन्तर प्रयासरत है। हम सभी को इस समय सरकार पर विश्वास रखना चाहियें। और हां स्वस्थ्य होनें वाले मरीजों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। सुशीला ने कहा- --

सुशीला की बाते रामलाल को कुछ हद तक समझ में आनें लगी थी। लेकिन सुशीला बिना टी.वी. देखे मेरा दिन कैसे कटेगा। रामलाल नें सुशीला से पूछा.....

दिन काटनें कि जगह दिन का सदुपयोग करनें की बात करियें- सुशीला नें रामलाल से कहा।

सुशीला, दिन का सदुपयोग -- लेकिन कैसे......

जी हां इस कोरोना काल में आप आध्यात्मिक पुस्तके पढ़ियें, ईश्वर भक्ति करियें, जिससें आपका मनोबल मजबूत होगा। आपको आत्मबल मिलेगा। नकारात्मक विचार आपको भयभीत नही कर पायेगे।

कुछ देर बातो को विराम देते हुयें रामलाल नें अपनी लाठी के सहारे उठकर अलमारी में रक्खी एक धार्मिक पुस्तक उठायी और उस पर जमी धूल झाड़नें लगे। पास बैठी सुशीला मन ही मन मुस्करा रही थी। और शायद सोच रही थी कि इस बहानें किताबों पर जमीं धूल तो साफ हो गयी। रामलाल उस पुस्तक को बैठकर पढ़नें लगे। तभी उस पुस्तक में रखा एक कागज नीचे गिर गया। जिसपर बड़ें अक्षरों में लिखा था कि मन के हारे हार है औऱ मन के जीते जीत...............

रामलाल नें उस कागज को उठाया और पढ़नें लगे जो कि उनकी युवावस्था के दिनों में उनकी पत्नी सुशीला नें उन्हे लिखकर दिया था। जब वो एक लम्बी बीमारी से ग्रसित थें।

सच में मन के जीते जीत है.... रामलाल मन ही मन यह शब्द गुनगुनानें लगे और पास बैठी सुशीला को वह कागज दिखानें लगे। पता ही नही चला दोनो पती - पत्नी कब अपने पुरानें दिनों की यादों में खो गयें।

 युवा लेखक

गौरव सक्सेना 
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म" नें दिनांक 2 मई 2021 को सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित किया।

 

मन के जीते जीत है, मन के हारे हार है ......................


Gaurav Saxena

Author & Editor

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