एक सच्चा अनुभव.. दिलों में जिन्दा है ईमानदारी..


 एक सच्चा अनुभव.. दिलों में जिन्दा है ईमानदारी..




एक सच्चा अनुभव.. दिलों में जिन्दा है ईमानदारी..


शिमला से तकरीबन 20 किमी0 की दूरी पर बसा पहाड़ी शहर कुफरी हिमाचल प्रदेश पर्यटन को और अधिक खूबसूरत बनाता है। हिमालयी पहाड़ियों के मध्य बसे होने के कारण कुफरी का वातावरण वर्षभर खुशनुमा और प्राकृतिक अठखेलियॉ करता रहता है, कुफरी के इसी प्राकृतिक आकर्षण ने मुझे अपनी ओर खींचा और फिर क्या था अपनी घुमक्कड़ी मित्र मंडली के साथ मैं कुफरी जा पहुंचा। वहॉ पहुंचकर मैने अनुभव किया कि वास्तव में कुफरी को प्रकृति ने बखूबी बहुत खूबसूरती से तराशा है। 


मैने स्थानीय टूरिस्ट गाइड को अपने साथ यात्रा को आरामदायक और यादगार बनाने के लिए साथ में रखा था। घुमावदार रास्तों से गुजरती हुयी हमारी कार को रोकते हुये गाइड ने हमे पैदल आगे का बर्फीला रास्ता तय करने का हुक्म सुनाया और फिर क्या ... हमारी टोली निकल पड़ी बर्फीले पहाड़ों की सैर करने। मैने कुफरी के प्राकृतिक नजारों को ताउम्र संजोने के उद्देश्य से एक अच्छा सा कैमरा और कुछ रास्ते के लिए जरूरी सामान अपने साथ रख लिये थे। इस रोमांचक यात्रा की शुरूआत में हमारी मुलाकात कुछ स्थानीय लोगो से हुयी जो जीविकापार्जन हेतु पूर्णतया पर्यटन पर ही आश्रित थे और बर्फीले वातावरण में उगने वाली औषधियों और जड़ी बूटियों को अचार के रूप तैयार कर तथा अन्य खाद्धय पदार्थों को पयर्टकों को बेचकर गुजर बसर करते है।


 बातचीत के दौरान एक नन्ही सी लड़की नें मेरी एकाग्रता को भंग करते हुये मुझे भुट्टा (मकई) खरीदने के लिये बोला, जो कि किसी आग पर न भूनकर गर्म पानी में उबाला गया था। मैने भुट्टा खरीदा और आगे के लिए जल्दी- जल्दी पग बढ़ाने लगा। मेरे मित्र जो कि मानो बर्फीले पहाड़ों को देखकर पागल ही हो गये थे। कोई किसी मुद्रा में तो कोई किसी मुद्रा में एक दूसरे की और प्राकृतिक नजारों की तस्वीरे खींचनें में मशगूल थे। उनकी व्यस्तता का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि उन्हे यह भी ध्यान नही रहा कि मैं उनसे कब पीछे छूट गया। 

तभी मैनें भी सोचा क्यो न मैं भी अपने कैमरे से कुछ तस्वीरे उतार लूं। और अगले ही पल मानों मेरे नीचे से जमीन ही खिसक गयी हो, मैने देखा कि मेरा कैमरा कहीं गुम हो गया जो सम्भवत: यात्रा के दौरान स्थानीय लोगो से खरीददारी के समय कहीं गुम हो गया। मैने पीछे कुछ दूर भागकर सामान बेचनें वालों को खोजा परन्तु निराशा ही हाथ लगी। मैं उदास होकर अपनी मित्र मंडली से सम्पर्क करने की कोशिश कर रहा था, परन्तु खराब हो चुके मौसम में फोन से बात सम्भव न हो सकी। और मै जल्दी – जल्दी ऊपर पहाड़ियों पर अपने मित्रों का साथ पकड़ने के लिए आगे बढ़ने लगा। और मन ही मन वहॉ के स्थानीय बेचने वालों को बुरा भला कहने लगा, कि यह लोग खरीददारी के बहाने पर्यटकों का ध्यान हटाकर उनकी चीजे हथियानें और उन्हे ठगने का काम भी करते है। 


अब बिन कैमरा इतने दुर्लभ प्राकृतिक नजारों को सजोने का सपना धूमिल हो चुका था। और काफी हद तक बिन कैमरा मेरे लिए यहॉ घूमना भी अब निरर्थक सा  लगने लगा था।
खैर ! अपने आप को सम्भालते हुये मैं प्रकृति की गोद में खोने लगा और फिर फोन पर मित्रों से बात हुयी तो उन्होने कैमरे खोने की बात को छोटी बात समझकर भूलने को कहा औऱ मुझे अब आगे न बढ़कर वहीं रास्ते में ठहर कर इन्तजार करने को कहा, क्योकि अब सभी पयर्टकों का ऊपरी पहाड़ी से लौटकर नीचे अपनें वाहनो तक लौटने का समय पूरा हो चुका था। थोड़ी देर में अन्य पर्यटकों के साथ मेरी मित्र मंडली ने आकर मेरे पीछे छूट जाने का वाक्या विस्तार से पूछा और फिर हंसी ठिठोली के साथ सभी लोग कार के पास आकर पहाड़ो से विदाई लेकर कार में चढ़ने लगे और मैं भी उन सभी के बीच अपनी बनावटी हंसी दर्ज करा रहा था, और मन ही मन स्थानीय बेचने वालों के व्यवहार को कोस रहा था। 

तभी अचानक से एक दबी आवाज अरे बाबूजी ! आपका कैमरा..... कार से उतरकर देखा तो वहीं छोटी लड़की जिसने मुझे मकई का गर्म भुट्टा बेचा था, मुझे मेरा कैमरा वापस कर रही थी। वह बोली बाबू जी, आपको सारे दिन मैने खोजा पर आप नही दिखे, और यह कैमरा आप मेरे पास ही भूल गये थे। और हॉ मैंने इसमें पहाड़ों की खूबसूरत बहुत सारी तस्वीरे भी खींच दी है। 


मैने उसे धन्यवाद दिया और अपनी ही सोंच पर पश्चाताप करने लगा। मेरी यात्रा ने तो अपना पड़ाव पूरा कर लिया परन्तु यह यात्रा तो वास्तव में जीवनभर के लिए कैमरे और मेरे मन मस्तिष्क में संरक्षित हो गयी। और बहुत कुछ सीख भी दे गयी। कि हमें अपनी गलती स्वंय ही माननी चाहिये और किसी के बारे में गलत धारणा नही रखनी चाहिये।

लेखक
गौरव सक्सेना

Gaurav Saxena

Author & Editor

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