अपने अन्दर के रावण का दहन किया क्या ? ?
असत्य पर सत्य की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक पर्व
दशहरा प्रति वर्ष समाज को यह सन्देश देने आता है कि हम सभी को अपने अन्दर की
बुराइयों का उन्मूलन अवश्य करना चाहिये। इसी पर्व में प्रतीकात्मक रूप से रामायण
कालीन रावण जिसे बुराई के रूप में देखकर अच्छाई के स्वरूप भगवान राम के द्वारा वध
किया जाता है। तथा रावण और उसके भाईयों के पुतले जला कर असत्य पर सत्य की विजय का
पर्व पूर्ण होता है।
परन्तु यह प्रश्न अति महत्वपूर्ण और आत्म चिन्तन की अभिलाषा
से प्रतीक्षित अनउत्तरित सा प्रतीत होता है कि प्रति वर्ष हम बुराई के सूचक रावण का
वध कर रहे है लेकिन फिर भी रावण राक्षसी सुरसा की भॉति दिन प्रतिदिन और अधिक
शक्तिशाली कैसा होता जा रहा है। वध करने के बाद भी प्रति वर्ष रावण को समाज में
कौन जन्म दे रहा है। समाज में बढ़ते रावणों की संख्या के आगे यह प्रश्न अत्यधिक
गम्भीर हो चला है कि अब इसके वध के लिए इतने सारे राम कहॉ से लाये।
कहीं हम रावण दहन को एक औपचारिकता के रूप में तो नही मना
रहे है। क्या दशहरा पर्व के रूप में लीख तो नही पीटी जा रही है। आज जरूरत है इन
सभी प्रश्नों के उत्तर टटोलने की । और यदि हमने समाज में फैल रहे आसुरी बुराई रूपी
रावण को गम्भीरता से नही लिया तो निश्चय तौर पर समाज के सामने बुराईयों की एक बड़ी
विसात खड़ी होगी। शुरूआत हम से ही होगी जब हम सच्चे अर्थों में राम बनेगे। यकीन
मानिये हम अभी राम बन ही नही पाये है जो कलयुगी रावण को सदैव के लिए समाज से
समाप्त कर सकें। अपने आप से प्रश्न करिये कि क्या हमनें अपने अन्दर पनपते आसुरी
विचारों का दहन किया है। शायद उत्तर निराशाजनक ही होगा।
भागदौड़ भरी जिन्दगी से कुछ समय निकालिये और अपने अन्दर
सदविचारों और संस्कारों की रामायण सजाइये, बच्चों के जीवन में आदर्श के रूप में श्री
राम को स्थापित करके तो देखिये । नि:सन्देह समाज में खुशियों की हर दिन दीवाली होगी। और बुराई के रावण का समाज से
सच्चे अर्थों में दहन होगा।
इसी लेख को दैनिक जागरण कानपुर संस्करण ने दिनांक 21 अक्टूबर 2019 को प्रकाशित भी किया, लेख संलग्न है।
इसी लेख को दैनिक जागरण कानपुर संस्करण ने दिनांक 21 अक्टूबर 2019 को प्रकाशित भी किया, लेख संलग्न है।
लेखक
गौरव सक्सेना
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