मायके का सुख-- व्यंग्य लेख


मायके का सुख-- व्यंग्य लेख

 

मायके का सुख


हे सखी, तुम क्यो व्यर्थ चिन्ता कर रही हो, युगों – युगों से मायका ही हम स्त्रियों का मनपसन्द टूरिस्ट प्लेस रहा है। हम कितना भी ससुराल में हस बोल ले लेकिन हम सबका मन मायके में ही रमा बसा रहता है। तुम बेबजह ही परेशान हो रही हो। भला हमे कौन मायके जाने और मनचांहे दिनो तक वहॉ रूकने से रोक सकता है। इसलिए तुम बिना किसी भय के जितने दिन मन करे मायके मे खूब खेलो खाओ और मौज करो।

लेकिन मैं परेशान न होऊ तो क्या करूं – दूसरी चंचल सखी ने साड़ी के पल्लू से पसीना पौछते हुये कहा।

तभी झगड़ू सखी ने साहस बंधाते हुये चंचल सखी से अपनी समस्या से पर्दा उठाने का आग्रह किया।

तो चंचल सखी ने अपनी समस्या को आम स्त्री की समस्या बताते हुये कहा कि मेरे पतिदेव को मेरे मायके जाने की सूचना मात्र से ही 108 डिग्री का बुखार आ जाता है। यदि पैरासीटामोल काम कर भी जाये तो गिनती के 1-2 दिनो के लिए ही मायके जाने की स्वीकृति मिलती है और उसके बाद उनकी स्वीकृति पर हैड ऑफ डिपार्टमेन्ट सासू मॉ की मोहर लग पाना मुश्किल होती है। वहॉ से फाईल घूम कर चीफ ससुर साहब के पास जाती है तब जाकर कहीं मायके जाना फाइनल हो पाता है। अब तुम ही बताओ 2 दिन की परमीशन के लिए हम औरतो को कितने पापड़ बेलने पड़ते है। मैं कभी भी मन भरकर मायके में रुक ही नही पाती हूं।

अरे मेरी भोली चंचल सखी, बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो रही हो। तुम स्मार्ट जमाने में रहकर भी स्मार्ट न बन पायी।

मैं कुछ समझी नही झगड़ू सखी ......

सबकुछ समझाती हूं तू पहले मेरे लिए गर्मागर्म चाय और पकौड़ी का नास्ता तैयार कर , बहुत तेज भूख लगी है।

चंचल रसोई में जाकर गर्मागर्म नाश्ता तैयार करने लगती है और वहीं रसोई में झगड़ू भी आकर अपने ज्ञान रस की वर्षा करने लगती है।  

हे सखी कान लगा कर सुनो। हमारा देश विविधताओं और आस्थाओं से भरा पड़ा है, बस इसी को अवसर में बदल लो।

मैं कुछ समझी नही चंचल ने उत्सुकतावश पूछा-

तो झगड़ू ने कहा कि जब तुम्हारे निर्धारित दो दिन मायके में पूर्ण हो जाये तो बस फिर अगले दिन दिशा सूर्य, फिर अगले दिन चौथ और फिर पड़वा इत्यादि दिन बताकर अपने ससुराल में अपनी मॉ से फोन करवाकर मना करवा देना कि अभी यह दिन यात्रा के लिए शुभ नही है, जब शुभ दिन आयेगे तब ही ससुराल वापस आना होगा। फिर इसी प्रकार जितने दिन मन करे आराम से रहना ओर इसी प्रकार दिन औऱ त्यौहारों का सहारा लेती रहना।

ठीक कहा बहिन मैं अब आराम से खूब मन भरकर मायके मे रहूंगी।

और फिर चंचल ने ठीक ऐसा ही किया और पूरे दो महीने आराम से मायके में रहकर वापस लौटी है। चंचल के वापस लौटते ही उसकी सास भी अपने मायके के लिए रवाना हो गयी।

अब चंचल रोज अपनी सास को फोन करती है कि सासू मॉ कब वापस आओगी, अकेले घर काटने को दौड़ता है। हर बार उसकी सास शुभ दिन की बात कह देती है और आज 6 माह बीत चुके है। चंचल अपनी सासू मॉ की वापस यात्रा के हर रोज शुभ दिन की राह देख रही है।

 

लेखक

गौरव सक्सेना
354 करमगंज, इटावा

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" ने अपने 17 सितम्बर 2023 के अंक में प्रकाशित किया है। 



मायके का सुख

Gaurav Saxena

Author & Editor

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