नेता जी का अफसर बेटा - व्यंग्य लेख

 नेता जी का अफसर बेटा

नेता जी का अफसर बेटा - व्यंग्य लेख


अरे भईया कुछ करिये नही तो अपना और अपने परिवार का नाम मिट्टी में मिल जायेगा। क्या बताऊ झगड़ू मैं खुद बहुत परेशान रहता हूं। मेरा इकलौता लड़का और वह भी किताबी कीड़ा हैदिन-भर किताबो में ही घुसा रहता है, बीमारी का बहाना बनाकर रात-रातभर पढ़ाई करता है। इस उम्र में जहॉ लड़को को मंहगे मोबाइल फोनकारबाईक और गर्ल फ्रेंड का रोग लगा होता है वहीं मेरे नबाबसाहब को पढ़ाई के अलावा कुछ दिखाई ही नही देता है। कहता है पढ़ लिखकर एक दिन बड़ा अफसर बनूंगा। लेकिन अपने खानदान में तो सभी दम-खम वालेलड़ाई- झगड़े वालेकोर्ट – कचहरी में पेश होने वाले नेता हुये है। झगड़ू ने बीच में ही बात काटते हुये कहा। हॉ झगड़ू पता है पर इस लड़के की बुद्धि को क्या करे। तुम मेरे भाई होतुम ही कोई रास्ता बताओ जिससे मेरे बेटे का मन पढ़ाई से सदा के लिए दूर हो जायेअपने खानदान में तो बस नाम के लिए रूपया देकर डिग्री खरीदी जाती है। यदि हम लोग पढ़ाई- लिखाई करने लगे तो भला राजनीति कौन करेगाजनता से झूठे वादे कौन करेगाकाले- धन्धे कौन करेगागरीबो को कौन चक्करघन्नी की तरह घुमायेगा।

      बिल्कुल ठीक कहा आपने भईयामेरे दिमाग में एक उपाय है जिससे निश्चय तौर पर आपके बेटे और मेरे भतीजे का मन पढ़ाई से हमेशा के लिए दूर चला जायेगा। अरे वाह! झगड़ू जल्दी बताओ मैं जल्द ही वह उपाय करूंगा। आप एक काम करो कि उसकी किताबे ऐसी जगह छुपाओं कि उसे किसी भी कीमत पर वह मिल न सके। जब किताबे ही नही होगी तो पढ़ेगा क्याऔर पढ़ेगा नही तो अन्त में नेता ही तो बनेगा।

अरे छोटे कर दी न वही छोटी बात। जब वह हाईस्कूल में पढ़ता था तब उसकी परीक्षा के समय मैनें और तुम्हारी भाभी ने मिलकर यह उपाय किया था उसका नतीजा यह निकला था कि उसने पूरे कॉलेज में टॉप किया था। पता नही कितनी बुद्धि है उसके पास......

फिर तो आप उसकी शादी कर दो। घर-गृहस्थी और फिर बाल – बच्चे इन्ही मे फस जायेगा। फिर हो गयी पढ़ाई- लिखाई और बन गया अफसर।

नही झगड़ू शादी के नाम पर तो वह खाना- पानी तक छोड़ देता है। कहता है पहले अधिकारी बनेगा फिर किसी अधिकारी लड़की से ही शादी करेगा।

झगड़ू – लेकिन भईया, क्या जरूरी है कि उसे इस बेरोजगारी के समय में अधिकारी लड़की मिल ही जायेगी।

हां मैनें यह बात पूछी थीतो बोल रहा था कि लड़की शिक्षित होनी चाहियें फिर मैं उसे स्वंय नौकरी के लिए तैयारी करवाऊंगा।

तब तो हो गया भईया बंटाधार... आपको पता भी है आजकल क्या चल रहा है पढ़ लिखकर लड़कियां अधिकारी बन जाती है और फिर चल देती अपने पतिदेव को छोड़कर अपनी नई दुनियां बसानें......

हॉ सब पता है- नेता जी नें गहरी सांस लेकर कहा। नेतागीरी से थका हारा जब मैं घर वापस आता हूं तो फिर से वही नुकीलें प्रश्न मन मस्तिष्क को भेदनें लगते है कि यदि कहीं पढ़ लिखकर मेरा इकलौता बेटा कोई बड़ा अफसर बन गया तो फिर नेतागीरी कौन करेगा। मैं जनता और मीडिया की नुकीली बातो को चुटकियों में इस प्रकार से गिरा देता हूं जैसे हर चुनाव में हम विपक्ष को गिराते है। सत्ता पक्ष में अच्छी खासी धाक, शान- शौकत और धन – दौलत की अपार सम्पदा होनें के बाद भी मैं अपनें लड़के से हारा हूं। किसी नें सच ही कहा है कि औलाद जो कराये सो कम है।

तभी दरवाजे की घन्टी बजती है। मौहल्ले वाले, रिश्तेदारशुभचिन्तक मिठाई लिए घर में घुसने लगते है। पूंछने पर पता चला कि जिसका डर था वहीं हुआ। नेता जी के लड़के का सरकारी सेवा में चयन हो गया है वह अब अधिकारी बन गया है। आखिर होनी को कौन टाल सकता है।

नेता जी खुशी के लड्डू खाकर धड़ाम से सोफे पर गिर पड़ेवह मौन थेसदमें में थे। लोग कह रहे थे कि खुशी में अक्सर ऐसा ही होता है लेकिन नेता जी और उनके परिवार के लिए तो यह खुशी मानो एक मातम बन कर आयी हो।

 

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपने 09 जुलाई 2023 के अंक में तथा दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण ने 11 जुलाई 2023 को अपने अंक में प्रकाशित किया है। 

नेता जी का अफसर बेटा - व्यंग्य लेख

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Gaurav Saxena

Author & Editor

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