रक्षाबन्धन पर्व पर विशेष जनहितार्थ सन्देश

 रक्षाबन्धन पर्व पर विशेष जनहितार्थ सन्देश

वह कहनें को तो मात्र एक धागा है लेकिन वह एक अटूट बन्धन है प्रेम, वात्सल्य और सम्मान का। इसी धागे को हर वर्ष बहिनें अपनें भाई की कलाई पर बांधती है तो भाई अपनी बहिन को उसकी रक्षा हेतु बचन देता है और यह खास दिवस रक्षाबन्धन कहलाता है और कलाई पर धागे के रूप में बंधा प्यार भाई –बहिन के प्रेम को नित्य मधुरम बनाता है। माना कि आधुनिकता नें इस पर्व के भी मायनें बदले है लेकिन इसे ईश्वरी अनुकम्पा और भारतीय संस्कारों की शक्ति ही कहेगे कि इस पर्व का मूल स्वरूप यथावत बना हुआ है।

बहिनों का भाईयों के प्रति प्रेम औऱ विश्वास अति प्राचीनकाल से चला आ रहा है। इसका जिक्र रामायणकाल में भी देखनें को मिलता है। जब लंकापति रावण अशोक वाटिका में माता सीता से बात करनें जाता था तो माता सीता अपनें और रावण के मध्य में तिनके को रख कर रावण से निर्भय होकर वार्तालाप करती थी। और रावण को चेतावनी देकर कहती थी कि हे दुष्ट राक्षस यदि तुझमें इतनी सामर्थ है तो इस तिनके को पार करके दिखा। लेकिन वास्तव में रावण में इतना सामर्थ था ही नही कि वह इस तिनके को पार कर सकें। क्योकि तिनका भूमि से पैदा होता है इसलिए इसे भूमिज कहा जाता है और माता सीता का जन्म भी भूमि से हुआ है जिस कारण से माता सीता का एक नाम भूमिजा भी पड़ा है। इसप्रकार से तिनका माता सीता का रिश्ते में भाई हुआ। और माता सीता को अपनें भाई पर पूर्ण विश्वास था कि उसके भाई के रहते दुनियां का कोई भी रावण सीता का बाल भी बांका नही कर पायेगा। भाई के प्रति माता सीता का विश्वास अटूट था जो कि वन्दनीय एवं अनुकरणीय है।
इस रक्षाबन्धन पर ईश्वर सभी बहिन-भाईयों की रक्षा करें और भाईयों के प्रति बहिनों के विश्वास को निरन्तर बनायें रखे तथा भाईयों को चाहियें कि हर नारी जाति की को वह सम्मान दे और उनकी रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहें। तभी सच्चे अर्थो में यह पर्व अपनें उद्देश्य को पूर्ण कर सकेगा।

 
लेखक
गौरव सक्सेना


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "वेलकम इंडिया" नें अपनें 12 अगस्त 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 
रक्षाबन्धन पर्व पर विशेष जनहितार्थ सन्देश




Gaurav Saxena

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