स्वाद के साथ- साथ अपनापन भी चला गया
अब देर रात ऑफिस से घर आकर सोशल मीडिया की जिम्मेदारी शायद बूढ़े मॉ- बाप की जिम्मेदारी से बढ़कर हो गयी है। हॉ कमानें खानें के तौर तरीके जो बदल गयें है, शायद हम मार्डन अर्थात आधुनिक जो हो गयें।
क्या आप भी न जानें फिर से आदर्शवादी बाते ले कर बैठ गयें।
नही शकुन्तला मै तंग आ गया हूं इस बदलती अपनों की दुनियॉ से,
भला कब तक नौकरों के सहारे जिन्दा रहूंगा। राम लाल नें एक गहरी सांस लेते हुयें अपनी पत्नी शकुन्तला से कहा....
शकुन्तला - अरें आप परेशान न हो, मै सब कुछ सम्हाल लूंगी।
तभी कमरे के अन्दर से बाई दो खाना की थाली बूढ़े मॉ- बाप को दे कर चली गयी।
दोनो नें एक – दूसरे को देखा और फिर नजरे झुकायें भोजन करना शुरू कर दिया।
भोजन समाप्ति के बाद ही बहू और बेटे का घर के अन्दर प्रवेश करना हुआ, बेटे नें तो फिर भी हमारी खैरियत पूछ ली, परन्तु बहू शायद ज्यादा ही आधुनिक हो गयी थी, तभी सीधे अपनें कमरे में चली गयी।
कैसा खाना बना बाबू जी – बेटे ने पूछा
खाना तो ठीक बना है लेकिन अब खाने में स्वाद नही लगता है, स्वाद ही चला गया है।
तभी कमरें से बाहर निकलती हुयी बहू बोली, बाबू जी स्वाद का चला जाना तो कोरोना के लक्षण हो सकते है, चलो कल आप की जॉच कराते है।
ठीक है बहू कल जॉच करा देना, अब तो स्वाद के साथ- साथ अपनापन भी चला गया है।
किस – किस की जॉच करायी जायेगी...
बाबू जी के शब्दों ने एक खामोशी की लम्बी दीवार खड़ी कर दी थी.......................................
खामोशी में बहू – बेटे पता ही नही चला कब अपनें कमरें में चले गयें। और बाबू जी कल का इन्तजार कर रहे थें।
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र देश धर्म नें अपनें 1 नवम्बर 2020 के अंक में बदलती अपनों की दुनियां शीर्षक से प्रकाशित किया है। तथा दैनिक जागरण नें 07 दिसम्बर 2020 को शीर्षक " अपनापन चला गया" के नाम से प्रकाशित किया है।
लेखक
गौरव सक्सेना
0 Comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in comment Box